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आ तू ग॑हि॒ प्र तु द्र॑व॒ मत्स्वा॑ सु॒तस्य॒ गोम॑तः । तन्तुं॑ तनुष्व पू॒र्व्यं यथा॑ वि॒दे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā tū gahi pra tu drava matsvā sutasya gomataḥ | tantuṁ tanuṣva pūrvyaṁ yathā vide ||

पद पाठ

आ । तु । ग॒हि॒ । प्र । तु । द्र॒व॒ । मत्स्व॑ । सु॒तस्य॑ । गोऽम॑तः । तन्तु॑म् । त॒नु॒ष्व॒ । पू॒र्व्यम् । यथा॑ । वि॒दे ॥ ८.१३.१४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:13» मन्त्र:14 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:9» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:14


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शिव शंकर शर्मा

इससे प्रार्थना करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र (तू) शीघ्र (आगहि) हमारे शुभकर्मों में प्रकट हो। और (तु) शीघ्र (प्र+द्रव) हम भक्तजनों पर कृपादृष्टि कर और तू (गोमतः) वेदवाणीयुक्त (सुतस्य) यज्ञ को (मत्स्व) आनन्दित कर और (पूर्व्यम्) पूर्व पुरुषों से आचरित (तन्तुम्) सन्तानादि सूत्र को (तनुष्व) विस्तारित कर (यथा) जिससे मैं उस तन्तु को (विदे) प्राप्त कर सकूँ ॥१४॥
भावार्थभाषाः - हे ईश ! तू हमको देख। अच्छे मार्ग में ले चल। यश को बढ़ा। पूर्ववत् पुत्रादिकों को बढ़ा ॥१४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (तु) शीघ्र (आगहि) आइये (तु) शीघ्र ही (प्रद्रव) सुरक्षित करिये (सुतस्य, गोमतः, मत्स्व) संस्कारशुद्ध प्रशस्तवाक् विद्वान् को हर्षित करिये (पूर्व्यम्) अनादि (तन्तुम्) परम्परागत सन्तान को (तनुष्व) बढ़ाइये (यथा, विदे) जिस प्रकार हम लोग आपको जानते रहें ॥१४॥
भावार्थभाषाः - हे परमात्मन् ! आप कृपा करके संस्कारी तथा प्रशस्त वाक्=बोलने में चतुर विद्वान् पुरुषों को ऐश्वर्य्यसम्पन्न करें और उन्हें पुत्र-पौत्रादि सन्तान से भी वृद्धि को प्राप्त करें, ताकि वह परम्परागत आपको प्रजाजनों पर प्रकाशित करते रहें ॥१४॥
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शिव शंकर शर्मा

प्रार्थना विधीयते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! त्वं तु=क्षिप्रम्। आगहि=आगच्छ आगत्य च। अस्माकमुपरि। तु=शीघ्रम्। प्र द्रव=प्रकर्षेण द्रवीभूतो भव। दयादृष्टिं कुरु। अपि। गोमतः=वेदवाणीयुक्तस्य। सुतस्य=यज्ञस्य। मत्स्व=मोदय=आनन्दय। हे इन्द्र ! पूर्व्यम्=पूर्वैः कृतम्। तन्तुम्=सन्तानादिरूपं सूत्रम्। तनुष्व=विस्तारय। यथा=येन प्रकारेण। तं तन्तुमहं विदे=उपलभे ॥१४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (तु) क्षिप्रम् (आगहि) आयाहि (तु) क्षिप्रम् (प्रद्रव) प्ररक्ष (सुतस्य, गोमतः, मत्स्व) संस्कृतं वाग्मिनं हर्षय (पूर्व्यम्) परम्परागतम् (तन्तुम्) सन्तानं (तनुष्व) वर्धय (यथा, विदे) यथाहमुपलभे ॥१४॥